मंगलवार, 13 मई 2008

सर्वेश्वर उन कवियों मेंहैं जो संवेदनशील व्यक्तियों पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ जाते हैं। सर्वेश्वर की इस कविता ने शायद पहली बार रुमानियत से परिचय करवाया....सही अर्थों मे

तुम्हारे साथ
रहकरअक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकरएक आँगन-सी बन गयी हैजो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।
हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने छोटे हो गये हैंकि मैं उनके शीश पर हाथ रखआशीष दे सकता हूँ,
आकाश छाती से टकराता है,
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।

तुम्हारे साथ रहकरअक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,
यहाँ तक की घास के हिलने का भी,
हवा का खिड़की से आने का,
और धूप का दीवार परचढ़कर चले जाने का।

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है
कि हम असमर्थताओं से नहीं
सम्भावनाओं से घिरे हैं,
हर दिवार में द्वार बन सकता है
और हर द्वार से पूरा का पूरा
पहाड़ गुज़र सकता है।

शक्ति अगर सीमित है
तो हर चीज़ अशक्त भी है,
भुजाएँ अगर छोटी हैं,
तो सागर भी सिमटा हुआ है,
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है।

2 टिप्‍पणियां:

सागर नाहर ने कहा…

बहुत बढ़िया ..

॥दस्तक॥

आशीष कुमार 'अंशु' ने कहा…

आप तो दर्शनशास्त्री जान पड़ते हैं