गुरुवार, 24 जनवरी 2008

हमें तो अब भी वह गुज़रा ज़माना याद आता है

हमें तो अब भी वह गुज़रा ज़माना याद आता है...तुम्हे भी क्या कभी कोई दीवाना याद आता है...

यह सवाल या यह उलाहना किसी और से नही अपने से ही है...अपना ही अतीत अपने से ही सवाल करता है कि क्या तुम्हे भी कोई दीवाना याद आता है?

अतीत की आवारगी अक्सर अपनी ओर वापस खींचती है....और वर्तमान का अवसरवाद उस आवारगी को दीवानेपन का नाम दे दो घरी के लिए रोमांचित और नोस्ताल्गिक हो जाता है। बस और कुछ नही...कोई स्पंदन नही...

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