हमें तो अब भी वह गुज़रा ज़माना याद आता है...तुम्हे भी क्या कभी कोई दीवाना याद आता है...
यह सवाल या यह उलाहना किसी और से नही अपने से ही है...अपना ही अतीत अपने से ही सवाल करता है कि क्या तुम्हे भी कोई दीवाना याद आता है?
अतीत की आवारगी अक्सर अपनी ओर वापस खींचती है....और वर्तमान का अवसरवाद उस आवारगी को दीवानेपन का नाम दे दो घरी के लिए रोमांचित और नोस्ताल्गिक हो जाता है। बस और कुछ नही...कोई स्पंदन नही...
Lok Sabha polls in Barmer 2009
15 वर्ष पहले
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